Saturday 2 August 2014

लखनऊ पुलिस का विद्रूप चेहरा

लखनऊ पुलिस का विद्रूप चेहरा

लखनऊ पुलिस का ढ़ीढ और घटिया चेहरा आज एक बार फिर उस समय देखने को मिला जब मैं अपने पति अमिताभ ठाकुर की एक एफआईआर लिखवाने थाना हजरतगंज गयीं.

अमिताभ और लखनऊ निवासी अशुतोश पाण्डेय पिछले लगभग एक माह से एक ऐसे गैंग के संपर्क में हैं जिसके सदस्य खुद को भारतीय बीमा नियामक प्राधिकरण (आईआरडीए) के अफसर बता कर तमाम लोगों को फोन करते हैं और उनसे बीमा सम्बन्धी किसी भी समस्या का निदान करने का आश्वासन देते हैं. इसी दौरान ये लोग सम्बंधित व्यक्ति से किसी ना किसी बहाने पैसे ले लेते हैं तथा इनके पैन कार्ड, बैंक अकाउंट जैसे महत्वपूर्ण अभिलेख प्राप्त कर लेते हैं, जैसा इन दोनों के साथ भी प्रयास किया गया.

इन दोनों लोगों ने पूरा प्रयास कर इस गैंग के तमाम लोगों के फ़ोन नंबर, उनके लखनऊ स्थित एक साथी का नाम और फोन नंबर और उनका दिल्ली स्थित पता ज्ञात कर थाना हजरतगंज के लिए एफआईआर दिया जो मैं थाने पर ले गयीं.

थाने पर इन्स्पेक्टर ने मीटिंग के नाम पर मिलने से मना कर दिया और उपनिरीक्षक श्याम चन्द्र त्रिपाठी और अजय कुमार द्विवेदी से बात करने को कहा. इन दोनों पुलिसवालों ने पहले तो बहुत देर तक मुझे बैठाये रखा और तमाम सवाल पूछे. जब मैंने उनके सवालों का उत्तर दे दिया और यह भी स्पष्ट कर दिया कि प्रार्थनापत्र के अनुसार ना सिर्फ संज्ञेय अपराध बनता है बल्कि इसका घटनास्थल भी हजरतगंज है तो उन दोनों ने सीधे-सीधे बदतमीजी की भाषा में कहा कि किसी भी कीमत पर एफआईआर दर्ज नहीं की जायेगी. जब मैंने कम से कम प्रार्थनापत्र रिसीव करने को कहा तो उन दोनों उपनिरीक्षक ने इसके लिए भी साफ़ इनकार कर दिया. मैंने इन्स्पेक्टर से बात करने की कोशिश की पर उन्होंने भी बात करने से मना कर दिया.

अब मैंने इस पूरी घटना का उल्लेख करते हुए एसएसपी लखनऊ को पत्र लिखा है और एफआईआर दर्ज कराने के साथ गलत आचरण के लिए जिम्मेदार दोनों उपनिरीक्षकों के खिलाफ कार्यवाही की भी मांग की है. यदि एसएसपी ने मामले में कार्यवाही नहीं की तो यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण होगा.

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